स्मृतिशेष

मिसाइल मैन का जाना

सुमन कुमार abdul-kalam-passed-away

देश को मिसाईल और अंतरिक्ष तकनीक के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में प्रमुख भूमिका निभानेवाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक और भारत के 11 वें राष्ट्रपति डॉ.अबुल पाकिर जैनुलआबेदीन अब्दुल कलाम का 27 जुलाई को 84 वर्ष की उम्र में मेघालय की राजधानी शिलांग में निधन हो गया। वह शिलांग के भारतीय प्रबन्धन संस्थान में लेक्चर दे रहे थे और अचानक हुए तेज हृदयाघात के कारण लेक्चर के बीच ही गिर पडे। उन्हें स्थानीय बेथनी अस्पताल जे जाया गया जहाँ डॉक्टरों ने जाँच कर पाया कि उनकी मौत हो चुकी है। डॉ.कलाम के निधन की सूचना मिलते ही केन्द्र सरकार ने देश में सात दिनों के राजकीय शोक की घोषणा कर दी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह समेत देश के गण्यमाण्य लोगों ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर गहरा शोक जताया है। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि देश और मैं ने अपना मार्गदर्शक खो दिया है। उन्होंने कहा, कलाम राष्ट्रपति थे, तब भी कहते थे कि मैं एक शिक्षक हूँ और देखिए अपने अंतिम समय में भी वह पढ़ा ही रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि कलाम बहुत ही सामान्य परिवार से आये थे और उन्होंने पूरी दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढाई। उनके जगह की भरपाई कोई नहीं कर पायेगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि देश ने अपना वास्तविक भारत रत्न खो दिया है।

 15 अक्दूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वर के धनुषकोडी गाँव में एक निम्न मध्यवर्गीय मुस्लीम परिवार में जन्मे कलाम के पिता जैनुलआबेदीन मछुआरों को नाव किराए पर देने का काम करते थे। इनका शुरुआती जीवन बहुत अभाव में बीता जिसके कारण डॉ.कलाम के जीवन में सादगी हमेशा केलिए बस गई। अपने जीवन के आखिरी क्षण तक डॉ.कलाम एक शिक्षक की भूमिका में रहे क्योंकि अपने कॅरिअर के दौरान भी उन्हें सबसे आनन्द अपना ज्ञान बाँटने में ही आता था। उन्होंने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अन्तरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने होवरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने केलिए भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आए जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओँ में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरीक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढाने का श्रेय भी कलाम को ही दिया जाता है। डॉ.कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल्स) प्रक्षेपास्त्रों को डिजाइन किया। इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। कलाम जुलाई 1992 से दिसंबर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे। उन्होंने स्ट्रेटेजिक मिसाइल्स सिस्टम का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु विस्फोट में भी उनकी भूमिका रही।  विज्ञान के क्षेत्र में इनकी उपलब्धियों और देश के प्रति निष्ठा को देखते हुए जुलाई 2002 में तत्कालीन राजग सरकार ने इन्हें देश के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। उन्हें वाम दलों के अलावा सभी दलों का जबरदस्त समर्थन मिला और 90 फीसदी से ज्यादा बहुमत के साथ वह देश के 11वें राष्ट्रपति चुन लिये गये।

 डॉक्टर कलाम ने अपने व्यक्तिगत जीवन में पूरी तरह अनुशासन, शाकाहार और ब्रह्मचर्य का पालन किया। उनके अध्ययन कक्ष में कुरान के साथ भगवत गीता भी रखी रहती थी और वे दोनों का अध्ययन किया करते थे। गैर राजनीतिक व्यक्ति होने के बावजूद उनकी छवि पूर्णत राष्ट्रवादी और भारत के कल्याण के बारे में सोचनेवाले शख्स की रही। उन्होंने कई किताबें लिखकर अपनी सोच से देश की युवा पीढी को प्रेरित किया। उनकी लिखी किताब विंग्स ऑफ फायर (हिंदी में अग्नि की उड़ान) देश के सर्वाधिक बिकनेवाली किताबों में शुमार की जाती है। उनकी इस किताब का 13 भारतीय भाषाओं के अलावा चीनी और फ्रेंच भाषाओं में भी अनुवाद किया गया। यह किताब उनकी अपनी ज़िन्दगी की जानकारी लोगों को देती है।

 इसके अलावा भी उन्होंने कई और किताबें भी लिखीं जिनमें इन्डिया 2020, माई जर्नी तथा इग्नाइटिड माइंड्स – अनलीशिंग द पॉवर विदिन इन्डिया प्रमुख है। इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। डॉ.कलाम को 1981 में पद्मभूषण और 1997 में भारतरत्न से सम्मानित किया गया।

'आउटलुक', हिन्दी पाक्षिक

1-15 अगस्त 2015 अंक से, साभार।

 

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