नई सहस्राब्दी में गांधी

डॉ.एन.राधाकृष्णन dr n radhakrishnan

नई सदी, नया वर्ष और नई सहस्त्राब्दी से जुड़ी उमंग अभी तक जारी है। सभी पर्वों एवं समारोहों की भाँति नई सदी और नई सहस्राब्दी का आगमन भील हर मानव की सुप्त आकांक्षाओं को प्रकट करने और उम्मीद न छोड़ने के रूप में देखा जाना चाहिए। मानव इतिहास के इस नए चरण के महत्व को समझने के गंभीर प्रयास अभी तक जारी हैं। यह एक प्रतीकात्मक अवसर है। इस अवसर पर हमें अपने अतीत के बारे में पुन: विचार करना चाहिए कि हमने क्या किया और क्या पाया तथा हर व्यक्ति को स्वयं को उद्देश्यों के प्रति पुन: समर्पित करना चाहिए। यह सत्य है कि जिनका बौद्धिक वैभव रोजाना के कटु वास्तविकताओं से अभी तक कुण्ठित नहीं हो गया है वे ही इस अवसर पर भविष्य केलिए नए सपने बन सकेंगे।

यह स्वाभाविक है कि इन अवसरों पर हम अपने और पूरे विश्व के उन
शूर-वीरों को याद करते हैं जिन महान् आत्माओं ने मानव की प्रगति और मानव- अस्तित्व केलिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस संदर्भ में यह स्मरण रखना दिलचस्प है कि गांधीजी से परिचित अपार जनसमूह उन्हें इस सहस्राब्दी का सर्वश्रेष्ठ युग पुरुष मानता है। मानवता केलिए गांधीजी के योगदान पर लोग अब पहले से अधिक जागरूक हैं। भारत में गांधीजी की सार्थकता शैक्षिक चर्चाओं का प्रिय विषय है। कुछ लोग यह तर्क करते हैं कि गांधीजी का प्रभाव क्षीण होता जा रहा है और उनको केवल जन्म एवं पुण्यतिथि के अवसर पर ही स्मरण किया जाता है। इस तर्क में थोड़ी बहुत सच्चाई हो सकती है और गांधीजी स्वयं भी वर्तमान हालात को देखकर व्यथित होते। इन सबके बावजूद, यह अकाट¬ सत्य है कि भारत के अपार ग्रामीण जनसमूह के मन पर जो गांधीजी का प्रभाव है, वह आश्चर्यजनक है।

इसी संदर्भ में मानवता केलिए छोड़ी गई गांधीजी की धरोहर पर फिर से दृष्टिपात करना चाहिए। यहाँ एक बड़ा प्रश्न उठता है कि क्या वर्तमान पीढ़ी केलिए कोई गांधी था, इस वक्तव्य का कोई अर्थ है? पिछले 52 वर्षों के दौरान गांधी हमसे दूर हो गए हैं। विज्ञान एवं तकनीकी उपलब्धियों ने हमारा जीवन-विन्यास एवं सामंजस्य बदल दिया है। विज्ञान और तकनीकी के इस विशाल ब्राहृाण्ड और पूरे विश्व का आकार सीमीत कर दिया है - 'विश्वव्यापी गाँव', 'वैश्ववीकरण' और 'विश्वीय नागरिकता' अब समय की पुकार है। गांधीजी के सिद्धान्त थे  वैकल्पिक प्रकृति के साथ एक रूप जीवन, जीवन में सादगी, ऐसा जीवन जो दूसरों के कष्टों को महसूस करें और एक ऐसा समाज हो जो भले प्राणियों की भाँति हर व्यक्ति के निर्वाह केलिए, साधन तो दे। उनकी विश्व दृष्टि 'वसुधैवकुटुम्बकम्' की स्तुति है।

भारत आने के बाद गांधीजी ने सबसे बड़ा पहला कदम चम्पारन में उठाया। चम्पारन से राष्ट्र विरोधी एवं जागरूकता की लपटें फैलनी शुरू हो गई जिसने विभिन्न वर्गों के लोगों को एकजुट कर दिया। चम्पारन सत्याग्रह ने मानव अधिकार सुरक्षा में एक नया अध्याय खोल दिया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में आज़ादी केलिए अहिंसात्मक आंदोलन ने सामाजिक न्याय और मुक्ति केलिए सबसे बड़े जन-आन्दोलन का रूप धारण कर लिया।

लंदन में गांधीजी जब विद्यार्थी थे तब उन्होंने औद्योगीकरण का अश्लील रूप देखा-किस तरह से औद्योगीकरण हर देश का विन्यास तथा रूपरेखा बदल देता है और वर्तमान के उपभोक्तावाद तथा भौतिकवाद का समावेश करता है जिसके लिए हर जगह का अधिकांश वर्ग चिंतित है। आज हम उस समाज में रह रहे हैं जहाँ पर कोई किसी की विद्वता तथा उपलब्धियों के कारण जानता या सम्मान नहीं करता है। किसी की बैंक में जमा राशि, शक्ति खरीदने की क्षमता, उसके पास कौन-सी कार है  या क्या वह बहुमंजिलीय इमारत में रहता है? उसके पास अविश्वसनीय संपत्तियाँ हैं - ये सब वर्तमान के मापदण्ड बन गये हैं। यह तो अब बीते समय की बात हो गई है कि जब किसी व्यक्ति की श्रेष्ठता का मूल्यांकन उसके सद्गुणों के कारण होता था। हमारी सोचने कुी अवधारणा बदल गई है। हम गुणों का मूल्यांकन केवन धन से करने लगे हैं।

इस लगातार बढ़ते उपभोक्तावाद, वैश्वीकरण तथा भौतिकवाद की कसती जकड़ के भयावह परिदृश्य में हमें देखना है कि गांधी दर्शन से हमें क्या मिल सकता है। गांधी को उदधृत करने के स्थान पर हम अपने आप से पूछें कि क्या हम गांधीजी के कुछ संदेश या आचरण अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में ग्रहण कर सकते हैं? हो सकता है कि गांधीजी की बहुत सी आचार-संहितायें पुरानी पड़ गई हैं। परन्तु उनकी मौलिक संहिता तथा जिस तरह का जीवन उन्होंने जिया तथा जो संदेश उन्होंने हमारे लिए छोड़ा-वे सब हमें विश्वसनीय तथा सुनहरे भविष्य केलिए एक ठोस रूपरेखा देते हैं। 1909 में लिखी गई पुस्तक 'हिन्द स्वराज'में उन्होंने पश्चिमी सभ्यता को नृशंस तथा निष्प्राण के रूप में वर्णन किया है। गांधीजी के कुछ मित्रों ने इस पुस्तक को वापस लेने की सलाह दी क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं यह पुस्तक उनकी नकारात्मक छवि न बना दे। दो दशकों के बाद जब गांधीजी ने यह पुस्तक पुन: प्रकाशित की तब उन्होंने प्रेस संदेश में कहा कि बीस वर्षों बाद भी इस पुस्तक में लिखे गये हर शब्द पर स्थिर हैं। कोई भी बात उनके अपने विचारों पर पुनर्दृष्टि डालने केलिए बाध्य नहीं कर सकती। गांधीजी ने कहा था कि ऐसा भी समय आयेगा जब, यदि हम प्रकृति की रक्षा नहीं करेंगे और अपनी आवश्यकताओं से अधिक उपयोग करेंगे, तब प्रकृति द्वारा देय वस्तुओं में भारी कमी आयेगी। सीमित संसाधन युक्त विश्व में असीमित उपभोग हमें विनाश की ओर ले जायेगा।

 

उपलब्ध वल्र्ड वाच रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक विश्व के सौ से अधिक नगरों में पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। यद्यपि गांधी ने कभी भी ग्रीन हाउस प्रभाव जैसे शब्दों का उपयोग नहीं किया है फिर भी वे समझ गये थे कि यदि हम प्रकृति की रक्षा नहीं करेंगे तो क्या परिणाम होंगे।

वे रूढीगत दार्शनिक नहीं थे। उन्होंने एक विशेष प्रकार का जीवन जिया और यह उन्होंने दूसरों पर छोड़ दिया कि वे किस प्रकार से उसका विवेचन करें, अनुकरण करें या समझें और यदि उन्हें उपयुक्त लगे तो उसका अनुसरण करें। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते सुधारवादी उपाय नहीं किये गये तो शीघ्र ही विश्व में जीवन की स्थितियाँ दमघोंटू होती चली जायेंगी। हमें बहुत से वृक्ष लगाने चाहिए और अपनी आवश्यकता से अधिक प्रकृति से नहीं लेना चाहिए। आवश्यकता से अधिक भोजन नहीं करना चाहिए, और आवश्यकता से अधिक संग्रह भी नहीं करना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि एक समय ऐसा आयेगा जब इस संसार में संसाधनों की नितान्त कमी हो जायेगी।

अत: हमें अपनी जीवन-शैली को सरल बनाना चाहिए। आजकल हम अपने घरों को एक छोटी दुकान की तरह सजाते हैं। हर मध्यवर्गीय तथा उच्च मध्यवर्गीय या धनी व्यक्ति का घर एक सजावटी दुकान में परिवर्तित हो चुका है। एक समय था जब टेलिविज़न एक विलास की वस्तु थी पर क्या आज हम इसे केवल भोग का साधन मान सकते हैं?

क्या गांधीजी का सरल जीवन, सत्य, साधन और साध्य में पवित्रता, मौलिक गुण, जो मनुष्य को जीवित रखते हैं, पर बलपूर्वक आग्रह ऐसी बातें निरर्थक हो गई हैं क्योंकि हम नई शताब्दी में प्रवेश कर रहे हैं। हमें इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि हमने गांधीजी को गंभीरता से नहीं लिया। विश्व के कई भागों में भी गांधीजी को गंभीरता से नहीं लिया गया है, उन्हें बिलकुल नकार दिया गया है। यहाँ-वहाँ के कुछ विद्वानों ने गांधीजी को समझने के लिए आध्यात्मिक रुचि दिखाई है। गांधीजी ने अंग्रेज़ों को परस्पर मित्र भाव से भारत छोड़ने पर मज़बूर कर दिया था, उन्होंने अंग्रेज़ों की मनोभावना तथा नेतृत्व को भी काफी हद तक एहसास करवा दिया था कि अंग्रेज़ों का भारत छोड़ने का समय आ चुका है। चाहे कोई भी विवशता हो, कोई भी प्रलोभन हो या कोई भी परिस्थिति हो - हमेशा बुराई से नफरत करो न कि बुरा करनेवाले आदमी से। इस बात पर गांधीजी के बलपूर्वक आग्रह ने गांधी तथा भारत के कई मित्र बनाये। उन्होंने कहा अंग्रेज़ी व्यवस्था जिसने उपनिवेशवाद और दमन को बढ़ावा दिया है- उससे नफरत करो न कि अंग्रेज़ लोगों से। "कोई भी स्वेच्छा से बुरा काम नहीं करता है हर व्यक्ति में एक दिव्य शक्ति होती है और कोई भी किसी को आहत नहीं करना चाहता'' - गांधीजी के इस विश्वास ने अंतर्राष्ट्रीय समाज के अधिकांश भाग को आकर्षित किया। हममें से कितने लोग ऐसा कर सकते हैं? हमें उनके द्वारा प्रस्फुटित इस संदेश को अंगीकर करना चाहिए। उनकी यही बात गांधीजी को अन्य दार्शनिकों और उपदेशकों से पृथक करती है। आज हम जिसे गांधी दर्शन कहते हैं वह गांधीजी की गतिविधियों और जीवन-शैली से निकला है। जो गांधीजी ने कहा था उसका हम पुन: स्मरण करते हैं। वे चाहते थे उनकी मृत्योपरान्त उनके लेखों को नष्ट कर दिया जाए। वह चाहते थे कि जो कुछ उन्होंने किया उसके लिए उन्हें याद किया जाए न कि जो कुछ उन्होंने कहा उसके लिए उन्हें याद किया जाए। यही एक सबसे बड़ा पहलू है जो गांधी को अन्य पारंपरिक दर्शन-शास्त्रियों से भिन्न करता है।

मैं दृढ़तापूर्वक दलील देता हूँ कि हमें गांधी को समझने, गांधी को खोजने केलिए एक नया तरीका अपनाने की आवश्यकता है। गांधी को पारंपरिक वाद विवादों के ज़रिए नहीं खोजा जा सकता। गांधी को बौद्धिक दृष्टिकोण के ज़रिए भी नहीं खोजा जा सकता।

 

                                  एन. राधाकृष्णन

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