presenna teacherविषु की याद में

डॉ. सी.जे. प्रसन्नकुमारी

और एक विषु का दिन भी आ गया। बडे सबरे  पिछले दिन रात में तैयार रखी "कणि' देखी। इसे छोड दे तो देवु केलिए विषु भी एक साधारण दिन जैसा। सबेरे पाँच बजे दीप जलाकर कणि देखने के बाद वह फिर जाकर दुबारा बिस्तर पर लेट गयी। बडे सबरे  उठकर क्या करे, कोई विशेष काम तो  नहीं। फिर साठे छः बजे उठकर चाय बना ली। एक कप प्रभेटट्न को आरै  एक कप अपने को। चाय लेकर देवु और प्रभेटट्न बैठक  में आथे, रेड़ियो सुनते हएु चाय पीने लगे। तभी बाहर समाचार पत्र ज़ारे से सामने आँगन में पटकने की आवाज़ सुनाई दी। हर  रोज़ पेपर बोयँ ऐसा ही करता है । बारिश है तो पत्र भीग जाएगा। पढ़  नहीं पाएँगे। कार पोर्च में डा ल सकता है पर वह कभी ऐसा न करेगा।

देवु ने बैठक का दरवाज़ा खोलकर पत्र उठा लिया। प्रभेट्टन भी बाहर आए। उन्होंने अंग्रेज़ी पत्र, देवु से माँग ली। देवु वहीं खड़े होकर पत्र के पन्ने पलटने लगी। प्रथम पृष्ठ में पिछले दिन वार्ता चैनल में सुना मुख्य समाचार हैं चुनाव का मौसम है इसलिए विभिन्न राजनैतिक गठबन्धनों की खींचातानी का वर्णन है दलों द्वारा आपसी कीचड़ उछालने के मामांकम से पत्र भरा है जल्दी देवु की आँखों में एक समाचार अटका - "मुंटक्कयम के बस स्टैंड में अस्सी उम्रवाली माँ को छोड़कर बेटा चला गया। आज माँ बाप भी कूड़ा कचड़ा , बन गया है, जहाँ चाहे छोड सकते हैं भोगो फेंको संस्कृति ने उन्हें ड्राश (Trash) में डा ल दिया है ।  "बूढ़ी माँ को गुरुवायूर मन्दिर  नगरी में छोड़कर बेटे ने जगह खाली कर दिया। वह अब भीखमाँगों की कतार में बैठकर भीख माँग रही है, बूढ़े बाप को खाट से बाँघरप बेटा परिवार सहित शादी में भाग लेने गया - खबरें पढ़कर देवु को सन्देह हुआ - क्या मैं केरल में नहीं हूँ, दो संतान के बावजूद भी विषु के दिन वर्षों से घर में देवु और पति ही है, वर्षें से देवु केलिए विषु त्योहार का दिन भी नहीं। बच्चे छोटे थे तो विषु और ओणम मनाते थे, उनकी खुशी देखकर स्वयं मस्त हो जाती थी।

तभी सबेरे टहलने के लिए निकले वरिष्ठ नागरिकों की मंडली की आवाज़ सुनाई दी। भैय्या आज कौन-सी खीर बन रहा है "हम बूढ़ा बूढ़ी केलिए क्या खीर? मुझे तो षुगर कम्प्लैन्ट भी है।''  प्रभेट्टन ने उत्तर दिया। "टीच्चर ऐसा मत सोचो कि खीर पीने केलिए कोई नहीं। हम तैयार है ' - वरिष्ठ मण्डली का कनिष्ठ सलाम भैय्या बोला वह  तो देवु के गाँव का है। शहर में आकर बस गया है। विषु की शुभ कामनाएँ देकर वे आगे बढ़ गये।

देवु के मन को एक अज्ञात पीड़ा ग्रसने लगी। वह जल्दी बैठक में आ गयी गया। दो दिन की छुट्टी लेते तो बैंगलरू  में ऊँचे औहदे में काम करने वाले बेटी बेटा आ सकते थे। एक हफ्ता घर में रह सकते थे। इस बार शनिवार, रविवार, अम्बेदकर जयन्ती, विषु ईस्टर सब जुड़कर आ गए हैं। ऐैसा तो अक्सर नहीं होता है लेकिन संतानों के खाते में माँ बाप के साथ रहने से ज़्यादा महत्व अपनी अर्जित छुट्टी को बचाकर रखने में है। इस बचत का उपयोग अपने अणु परिवार के पर्यटन, संतानों के जन्मदिवस समारोह, बेटे की परीक्षा, उनकी बीमारी, दोस्तों के साथ बड़ा खाना, दोस्तों की शादी, रेसिडेन्स एसोसिएशन के कार्यक्रम आदि केलिए हैं।

अपने बचपन की विषु की यादों में देवु खो गयी। विषु के पिछले दिन दुपहर से कणि रखने केलिए आवश्यक चीज़ें बटारे ने में सब व्यस्त रहते हैं। आँगन की कणिक्कोन्ना (कणिहार) से बड़ा भैय्या फूल तोडेगा । तभी पड़ोस की राधा चाची अपने अहाते की मिट्टी के दीवार के पास आएगी। ""विजय बेटा! कर्णिहार का फूल थोडा हमें भी देना। '' तोडे फूल बाटं कर आस पड़ोस में सबको देने का काम भी भैय्या स्वयं करेगा। फूल बांट-बांटकर रखेगा और उँगली से इशारा कर "यह सुलु चाची को, यह जानम्मा दीदी को, यह सुषमा भाभी को, यह हमारे लिए। देवु! कर्णिहार फूल थोड़ा पानी से, भिगोकर केले के पत्ते की पोटली में बाँधकर रखना, जल्दी करो, नहीं तो धूप में फूल मुरझा जाएगा।''  देवु जल्दी ही भैय्या ती आज्ञा का पालन करेगी, नहीं तो वह कान पकड़कर करवाएगा। कणि रखने केलिए आम डठंल और पत्ते सहित तोडना है। भैय्या जल्दी आम के पेड़ के पास दौडेगा,  निकट ही काजू का पेड़ है, काजू भी फल सहित डंठल और पत्ते के साथ ताड़ेता है। रसोई के बरामदे में खड़े होकर अम्मा ज़ारे  से पुकारेगी - " देवु! विजय से पक्का आम भी तोडने के लिए कहना। गिलहरी और चमगादड़ पक्का होना न देते। उससे पहले ही चककर ले जाएँगे ''  आखिर उन्हें भी कुछ खाना है न?'' अम्मा का आत्मगत। देवु बैठक  में घुस कर कर्णिहार के फूल पूजाघर में कृष्ण के चित्र के सामने रखती है। बीच के कमरे से जूट का बोरा और टाके री लेकर जल्दी आम के पेड़ के पास पहुँच जाती है। तभी तक बड़ा भैया या और छोटी बहनें वहाँ पहुँच गए होंगे। छोटा तो तब भी पड़ोस के छोटे लड़कों के साथ खेल में व्यस्त होगा।

बड़ा भैय्या जल्दी ही आम के पेड़ पर चढ़ेगा और सबको निर्देश देगा - " देवु और सुमा बोरे के चारों छोर पकड़ना। एक-एक हाथ से एक-एक छोर कसकर पकड़ना। पकड़ छूट जाएगा तो आम ज़मीन पर गिर जाएगा। कहीं एक भी आम सीधे ज़मीन पर न गिरे। कहीं ऐसा हुआ तो अगला आम दोनों के सिर पर पटक दूँगा।'' भैय्या आम तोड़कर बोरे पर गिरवाएगा। उस आम को जल्दी बोरे से उठाकर टोकरी में रखने का काम छोटी अनु करेगी। टोकरी भर जाने पर देवु आवाज़ देगी - "अम्मा! टोकरी भर गयी।'' "अभी आ गया'' आवाज़ के साथ अम्मा रसोई का दरवाज़ा बन्द करेगी। नहीं तो मुर्गी रसोई में घुस जाएगी। पांडन बिल्ला की दृष्टि भी हांडी में रखी मछली में होगी। अम्मा के पहुँचने तक बडे भैय्या भी पेड़ से नीचे उतर आए होंगे। भैय्या और अम्मा टोकरी के दोनों कनों को पकड़कर उसे बीच की कोटरी में ले जाएगी और ऊपर भूसा डालकर जल्दी पकने केलिए रख देंगी। बीच की कोटरी तो घर का भंडार है, उसकी कुंजी हमेशा अम्मा को दुप्पटे में सुरक्षित है।

आम तोड़ा गया। अब अहाते की मिट्टी की दीवार से सटकर पनपनेवाले अनानस पौधे से अनन्ना स ताड़े क र लाना है। देवु दौड़ पड़ी। पीछे से अम्मा बोली - "" देवु अनन्नास के पास साँप का बिल है, अकेले मत जाना, विजय को भी आने दे। '' भैय्या दौड़कर आए. आगे दौड़नेवाली देवु का कान पकड़कर उसे पीछे की ओर थकेला और आगे बढ़कर अनन्नास ताड़े  लाया। सहिजन के पेड़ में चढना तो पापा ने मना है। टोटी से सहिजन ताड़ेकर लाया। घर के पिछवाडे के विशाल अहाते में उगाए कसावा पौधों के बीच कद्दु भी लगाया है। कद्दु की बेला से कद्दु ताड़ेकर लाया। कटहल तोडने के लिए माँ भी कटहल के पेड़ के पास जाएगी, उसका पकापन जांचना भैय्या और देवु के वश की बात नहीं। नारियल तो हमेशा स्टाक है घर में। अब दुपहप के भोजन का समय है। छुट्टी का दिन तो पापा भी दकू ान से अकसर आएँगे। स्कूल के दिन हैं तो दुपहर की छुट्टी के समय भैय्या घर में आकर भोजन करेंगे और पापा का भोजन टिफिन बोक्स में साथ ले जाएँगे। पापा की दूकान तो स्कूल के निकट ही है।

पहले ही अम्मा ने "ओटुरुली' और बडा "निलविलक्कु', जानुदीदी से इमली और राख से साफ करवाकर माजकर रखी होगी। इन दोनों बर्तनों का उपयोग विशेष अवसर पर ही हे जाया करता है। रोज़ संध्या दीप तो छोटे निलविलक्कु में ही जलाती है। रात में रसोई का काम पूरा करके सो जाने के पहले अम्मा कणि सजाती है । एकत्र की गयी सारी चीज़ों के साथ कुछ सिक्के, चावल, नारियल, कटीहुई सुपारी, पान के पत्ते, एक टुक्कडा गुड़, वालकण्णाडी (विशेष आकार का आइना), नयी धोती, अम्मा के दो कंकण आदि भी करीने से रखकर ओट्टरुली सजाती है और पूजा के कमरे में भगवान कृष्ण की मूर्ति के पास रखती है। कृष्ण की मूर्ति में सोने की माला भी डालती है । अंत में निलविलक्कु में बत्ती रखकर (अकसर सात) तेल उँडेल देती है और दियासलाई पास में ही रखकर अम्मा बिस्तरजाती है रोज़ ब्रह्ममुहूर्त में जागकर स्नान करके देवी भागवत का परायण अम्मा का नियमित कार्यक्रम है। विषु के दिन में, निलविलक्कु में दीप जलाने के बाद वह  सबको जगाती है फिर एक एक को हाथों से आँखें मुंदवाकर पूजाघर ले जाती है और वहीं आँखें खुलवाकर कणि दिखाती है। फिर पापा हर  एक को एक रुपए का सिक्का "कैनीटम' देता है।कैनीटम के साथ अक्सर देवु के घर की विषु की परिसमाप्ति होती  है । आगे की चौदह  पन्द्रह करी (Curry) और खीरवाली दावत अकसर नहीं होती। विषु के दिन खेत और अहाते में काम होगा। काम केलिए आए बहुत  सारे मज़दूरों को खाना खिलाने केलए अम्मा को एड़ी चोटी का पसीना एक करना पडता है। उसके बीच दावत बनाना मुश्किल है। उस दिन उनकी सहायता केलिए अवश्य कोई होंगे ही।

अब अम्मा अस्सी पार कर चुकी है। पिछले साल देवु और भाई-बहनों  ने धूमधाम से अम्मा का अस्सी साल गिरह मनाया था। अब उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं, पैरों ने स्ट्राइक की घोषणा की है। इसलिए अम्मा ने बैसाखी से मदद माँग ली है। फिर भी वह  अपने घर में कणि सजाती है। पापा के स्वर्गवास के बाद खेती तो नाममात्र की रह गयी। घर में चौपाएँ भी न रहे। बैल बकरी सब पहले ही पापा ने बेच दी थी। पापा कैनसर की बीमारी से अस्वस्थ थे। उस समय भी अम्मा कजरी गाय को खोना नहीं चाहती थी। उसे घर में ही रखी, पापा की मृत्यु के छः महीने बाद अचानक एक दिन अम्मा का फोन आया - " देवु कज़री को सुकुमारन ले गया। रस्सी पकड़कर सुकुमारन को देते समय मैं आँसू न रोक पायी। लगा कि मेरे दोनों हा थ कटे जा रहे हैं । मैं उसकी पीठ थपथपाती रही, तो वह दैन्यता से मुझे देख रही थी।''

सुकुमारन अण्णन पापा के समय से देवु के घर के सहायक रहे दूरस्थ बन्धु भी। अम्मा रुकने का नाम न लेती, लगातार बोलती है - "अब उसे यहाँ सानी पानी कौन देगा? सुकुमारन उसकी अच्छी तरह देख भाल करेगा?' अम्मा स्वयं आश्वस्त हो रही थी। देवु ने सोचा, अम्मा के मन का बोझ इस तरह कम हो जाए। उसने कहा - "ले जाने दो अम्मा, अब अम्मा को आराम की ज़रूरत है, अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दो अम्मा। अहाते में इधर उधर दौड़कर घास बटोरना, कजरी को मवेशीखाने से बाहर निकालकर बाँधना, सब आपसे नहीं हो सकती। वह रस्सी खींचकर कभी दौड जाएगी तो अम्मा गिर जाएगी, तब बैसाखी भी काम में नहीं आएगी।'

"हे भगवान, मुझे जल्दी बुला ले, एक दिन भी बिस्तर पर लेटने न दे।' रोज़ की तरह फोन में भगवान से अम्मा का आवेदन भी सुनाई दी।

 अब तो घर में दूध तक बाहर से खरीदती है, पर कणि सजाने की आवश्यक चीज़ें अब भी अहाते में है, यद्यपि अहाते की विशालता अम्मा के बेटों और पोतों के नए घरों ने कम कर दिया है। देवु की मझली बहन का परिवार अम्मा के साथ है। अब कणि की चीज़ें उनके पोते पोतियाँ इकट्टा करती हैं।

अचानक मोबाइल बजने से देवु के मन की सवारी रुक गयी। देवु ने मोबाइल उठा लिया - "हैपी विषु अम्मा! अम्मा आज मन्दिर नहीं गयी?' बेटा सबेरे बुला रहा है "अभी जा रही हूँ बेटा!'' उसने अम्मा पापा को विषु की शुभकामनाएँ दीं। देवु और पति ने उसे भी शुभकामनाएँ देकर फोन बन्द कर दिया। बिटिया से कल रात देर तक बातें हर्इु  थी। उसने कहा था कि वह  सबेरे फोन नहीं करेगी। देवु ने जल्दी ही सेटुम्मुण्डु पहन ली (केरल की स्त्रियों का परम्परागत पोशाक)। मन्दिर जाते समय देवु को सेटुम्मुण्डु साड़ी से ज़्यादा अच्छा लगता है। निकटस्थ देवी मन्दिर  के मुख्यदेवता बालभद्रा केलिए लहंगा और दुप्पट्टा, उपदेवता नागराजा, नागयक्षी और नागकन्या केलिए पीले कपड़े, माटन तंपुरान केलिए लाल कपडे, योगीश्वर और गणेश केलिए छोटा दुपट्टा पिछले दिन ही खरीदकर रखे थे। देवु और प्रभटे्टन कपडे की पोटली लेकर मन्दिर गए। बुलाने पर अपनी अपस्थिति का आभास देनेवाली "पारयिल बालभद्रा'' का दर्शन किया, कपडे अर्पित किए,  अर्चना की रसीदी ली। प्रभटे्टन मन्दिर के कर्मचारियों को कैनीट्टम दिए। उषा पूजा के बाद दोनों जल्दी वापस आए। देवु ने नाश्ते केलिए दोशा और चटनी बनायी। नाश्ता करते हएु देवु ने पति से कहा - "हमारे बेटे बिटिया तो आज पास नहीं। इस विषु में हमारे दुपहर का भोजन अम्मा के साथ। दो घंटे की डा्र इव ही है। अम्मा बहुत खुश हागी। प्रभटे्टन ने हाँ कर दिया।

यादि टिप्पणी

1. मामांकम   -  केरल का एक महोत्सव

2. ओट्टुरुली   -  कॉसे का बर्तन जिस में कणि की चीज़ें सजाती हैं

3. निलविलक्कु   -  दीप जलाने का स्तंभ

4. कणि    -  ओट्टुरुली में सजी हर्इु  चीजें भगवान की मूर्ति,

        • जलती हुई  निलविलक्कु आदि का प्रथम दर्शन।
        • डॉ. सी. जे प्रसन्नकुमारी
        • गुरुवरम्, हाउस नं 40
        • कैरलीनगर, कुरवनकोणम, कवड़ियार पी ओ
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