समाजीकरण : मीडिया एवं युवाओं के संदर्भ में
समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें बच्चे एवं युवा अन्यों से सीखते हैं। यह सीखने की प्रक्रिया जीवन के प्रारंभ से शुरू होती है, एवं अधिकांश व्यक्तियों को अपने पूरे जीवन में सामाजिक पाठ सीखाती है। सामाजीकरण का समाज में महत्वपूर्ण स्थान है। समाजीकरण के कई कार्य हैं जैसे यह व्यक्तित्व विकास करता है। संस्कृति का हस्तांतरण करता है। इससे कार्य ग्रहण करना सीखा जा सकता है। सामाजिक नियन्त्रण रहता है। जनसंचार साधन सामाजीकरण केलिए एजेन्ट का कार्य करता है और उसका प्रभाव पड़ता है। फॉस्टेंगर का कहना है कि जनसंचार से प्राथमिक समूहों के सदस्यों के बीच एकमतता आती है जैसे टेलिविज़न के कार्यक्रम एक साथ बैठकर देखते हैं तो सभी में एकमतता आती है। अमेरिका मे किये गए एक अध्ययन के अनुसार – "अधिकांश 18 वर्षीय अमेरिकन युवा अपने स्कूल के समय, अपने मित्रों के साथ बिताये समय, यहाँ तक कि पालकों के साथ बिताए गए समय से भी अधिक समय टेलिविज़न देखने में व्यय करते हैं।" वर्तमान समय में युवा मीडिया से घिरे वातावरण से प्रभावित होता है। इसलिए युवाओं के समाजीकरण पर मीडिया का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है।
बीसवीं शताब्दी में किये गये शोध अध्ययनों में देखा गया कि टेलिविज़न प्रत्येक बच्चे के जीवन में प्राथमिक तत्व है। अत: हम यह देखते हैं कि प्रत्येक युवा के जीवन में मीडिया समाजीकरण पर प्रभाव डालनेवाला मुख्य तत्व है। शोध अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ कि मीडिया के उपयोग से, विशेषकर टेलिविज़न के प्रभाव से, बच्चों के स्वयं का प्रतिबिंब, अन्यों के प्रति अभिवृत्ति, एवं अर्न्तवैयक्तिक व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है जब बच्चे एवं युवा टेलिविज़न देखते हैं तो वे अपने आपको टेलिविज़न के पात्रों से तुलना करते हैं और उसके अनुसार अपने आपको आंकते हैं। सामान्यत: बच्चों एवं युवाओं के स्वयं के प्रतिबिम्ब पर इसका ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण केलिए विज्ञापन के प्रभाव से निम्नवर्गीय परिवारों के युवाओं की आत्म संतुष्टि का स्तर निम्न होता है एवं युवाओं में अवसाद पाया जाता है। युवाओं में स्वयं के प्रति ग्लानि का अनुभव होता है क्योंकि उसके पास टेलिविज़न पर दिखाई गयी वस्तुएं नहीं होती हैं।
युवाओं के जीवन में समाजीकरण के चार मुख्य एजेन्ट हैं। ये हैं – परिवार, स्कूल, मित्रों का समूह एवं मीडिया। इसके अतिरिक्त अन्य एजेन्ट हैं – धार्मिक पृष्टभूमि, कार्यस्थान एवं सामाजिक समूह। अधिकांश युवा इन्हीं तत्वों के मार्गदर्शन में जीते हैं। परिवार समाजीकरण का मुख्य एवं महत्वपूर्ण एजेन्ट है। परिवार व्यक्ति की मुख्य आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं, जैसे प्यार एवं पालन पोषण। यह मुख्य दृष्टि से सामाजिक, शारिरिक एवं संवेगात्क वृद्धि में सहायक होती है। अन्य सभी एजेन्टों की तुलना मे पालकों की भूमिका समाजीकरण की दृष्टि से बच्चों के विकास में अत्यन्त मह्त्वपूर्ण होती है। इसी प्रकार स्कूल एवं समूह भी बच्चो के समाजीकरण की दृष्टि से मह्त्वपूर्ण है। स्कूल नये सामाजिक विश्व को देखने केलिए दरवाज़ा खोलता है। युवाओं के सामाजीकरण में मीडिया अत्यंत प्रभावशाली भूमिका निभाता है। मीडिया जैसे समाचार पत्र, पत्रिका, कॉमिक पुस्तकें, रेडियो वीडयो गेम, सिनेमा एवं विशेषकर टेलिविज़न-समाजीकरण के अन्य किसी भी रूप की अपेक्षा एक अलग ही रूप प्रस्तुत करता है, क्योंकि इनमें अंर्तक्रिया का कोई अवसर नहीं होता है। टेलिविज़न बच्चों पर बहुत छोटी उम्र से ही प्रभाव डालने लगता है एवं उसके बौद्धिक एवं सामाजिक विकास को प्रभावित करता है।
छोटे बच्चों को मीडिया के द्वारा पढाना हानिकारक होता है क्योंकि उनमें इतनी तर्क क्षमता नहीं होती है कि वे वास्तविकता और कल्पना में अन्तर कर सके। इन मीडिया संदेशों को वृद्दिकारक एवं अचेतन प्रभाव बच्चों की क्षमता के विकास को सीमित कर देते है। अधिकांश बच्चों एवं युवाओं को मीडिया से प्राप्त ज्ञान एवं अनुभव अप्रत्यक्ष होता है। मीडिया पारदर्शी तकनीक नहीं है इसमें मीड़िया जो चाहता है वही दिखाता है, जोकि वास्तविकता से दूर होता है एवं व्यवसायिक दृष्टिकोण से होता है।
डॉ.मंजुलता के द्वारा किये गये शोध अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार 68 प्रतिशत युवा मनोरंजन केलिए टेलिविज़न देखते हैं न कि सूचना व जानकारी केलिए। इसी प्रकार 56 प्रतिशत युवाओं प्रतिदिन 2 से 3 घण्डे टेलिविज़न देखते हैं। जनसंचार साधनों मे सबसे अधिक टेलिविज़न का उपयोग करती है, फिर समाचार पत्र का और उसके बाद रेडियो का उपयोग करती है और सबसे कम फिल्म देखती है। निष्कर्ष में कह सकते हैं कि मीडिया, समाजीकरण में एक हद तक उपयोगी है। फिर भी इसमें कई प्रकार के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। मनुष्य हमेशा नये नये रास्ते की ओर जाते हैं। लेकिन बीच बीच में होनेवाली समसमयायें तथा कापट्य को पहचानने में वे असमर्थ हो जाता है। मीडिया ज्ञानवर्धक है और इससे कई प्रकार के उपयोग होते हैं । फिर भी सोच समझकर उपयोग न करे तो कई प्रकार के खतरे हो सकते हैं।
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