डॉ. एम.एस.राधाकृष्ण पिल्लै
जबलपुर विश्वविद्यालय से एम.ए (हिन्दी) प्रथम श्रेणी में और वहीं से पत्रकारिता पत्रोपाधि पाठ¬क्रम द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण। "हिन्दी तथा मलयालम के आंचलिक उपन्यासों में चित्रित स्थानीय रंगत एवं राष्ट्रीय समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन: हिन्दी में फणीश्वर नाथ रेणु, नागार्जुन और भैरव प्रसाद गुप्त तथा मलयालम में तकषी, मलयाट्टूर और पी.वत्सला के विशेष संदर्भ में" विषय पर कालिकट विश्वविद्यालय से पीएच.डी की उपाधि। आप केरल विश्वविद्यालय का मान्यता प्राप्त शोध निर्देशक भी है।
केरल के विभिन्न सरकारी कॉलेजों में हिन्दी प्राध्यापक के रूप में सेवा करने के बाद यूनिवेर्सिटी कॉलेज, तिरुवनन्तपुरम के हिन्दी विभाग से 2000 में रीडर (हिन्दी) के पद से सेवा निवृत्त। वहाँ से अवकाश ग्रहण करने के वाद केरल हिन्दी प्रचार सभा के स्नातकोत्तर हिन्दी अध्ययन केन्द्र में फैकल्टी और 1997 से 2012 तक "केरल ज्योति' हिन्दी मासिक पत्रिका के
सह-संपादक, संपादक और मुख्य संपादक के पदों पर मानद सेवा। साथ ही 2000 से 2012 तक केरल हिन्दी प्रचार सभा के अनुवाद एवं पत्रकारिता पाठ्यक्रम में भी अध्यापन का कार्य किया है। गत 15 वर्षों से सभा की कार्यकारिणी का सदस्य। (1997 से अक्तूबर 2012 तक। संप्रति, जनवरी 2014 से देशीय हिन्दी अकादमी का अध्यक्ष।
राज्य/राष्ट्रीय स्तर के लगभग 75 से अधिक साहित्यिक सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, परिचर्चाओं आदि में भागीदारी। नवभारत टाइम्स, नवभारत, दैनिक हिन्दुस्थान आदि (1970-80 के दौरान) एवं हिन्दी की अन्य विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों लेखों , अनूदित सामग्री आदि का प्रकाशन/आकाशवाणी से हिन्दी पाठ/वार्ताओं का नियमित प्रसारण, आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि केलिए अनुवाद का कार्य आदि। इनमें आकाशवाणी केलिए मलयालम से हिन्दी में अनूदित दो कार्यक्रम 2014 में राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुए थे। महात्मा गाँधी की पौत्री सुमित्रा गाँधी कुलकर्णी द्वारा हिन्दी में रचित "अनमोल विरासत' के प्रथम खंड का "अमूल्य पैतृकं' शीर्षक से मलयालम में अनुवाद - राज्य भाषा संस्थान द्वारा प्रकाशित - (1996)।अलावा इसके हिन्दी तथा मलयालम की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों लेख/फीचर/भेंट वार्ताएँ आदि प्रकाशित हुई हैं,
दैनिक जागरण, नई दुनिया, नूतन सवेरा आदि राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं केलिए रिपोर्ट/लेखन/अनुवाद, तथा दिल्ली से प्रकाशित राष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका आउटलुक साप्ताहिक/ मासिक/पाक्षिक केलिए दस वर्षों से (2006 से) नियमित लेखन। जनयुगम, पंचायत राज, बहुमुखम आदि मलयालम पत्र-पत्रिकाओं केलिए भी नियमित लेखन/अनुवाद कार्य। केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (क्षेत्रीय कार्यालय, तिरुवनन्तपुरम) में भाषा विशेषज्ञ (हिन्दी)। 1987 से 2005 तक 'केरल ज्योति' के हिन्दी सप्ताह/पखवाडा विशेषांकों का संकलन-संपादन। कतिपय वीडियो फिल्मों केलिए पटकथा का मलयालम से हिन्दी में अनुवाद, जिन में सीडिट की डॉक्युमेन्ट्री फिल्में भी शामिल हैं।
1975 जनवरी 10 से 14 तक नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन में केरल हिन्दी प्रचार सभा का प्रतिनिधित्व किया है।
तिरुवनन्तपुरम में रहते हैं।
केरलाञ्चल
नया कदम , नई पहल ; एक लघु, विनम्र प्रयास।
संपादक
डॉ.एम.एस.राधाकृष्ण पिल्लै (डॉ.एम.एस.आर.पिल्लै)
सहसंपादक
सलाहकार समिति
संपादकीय विभाग में सहयोग:
सहयोगी संस्थाएँ:
कार्तिका कंप्यूटर सेंटेर ,
कवडियार, तिरुवनंतपुरम-695003
देशीय हिन्दी अकादमी,
पेरुंगुष़ी, तिरुवनंतपुरम-695305
हिन्दी भाषा तथा साहित्य केलिए समर्पित एक संपूर्ण हिन्दी वेब पत्रिका
07/03/16 00:24:09
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सहसंपादक की कलम से
संपादकीय
'केरलाञ्चल' एक बिलकुल ही नई वेब पत्रिका है । हिन्दी के प्रचार प्रसार और प्रयोग के क्षेत्र में बिलकुल ही नयी पत्रिका । हिन्दी के प्रचार, प्रसार और प्रयोग के क्षेत्र में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ, दिल्ली के अधीन ही कई स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाएं कार्यरत हैं । भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के लिए अधिनियम बनाये गये है और उसके तहत देश भर में कर्मचारियों और साधारण नागरिकों में भी कार्यसाधक ज्ञान या हिन्दी के प्रति रुचि पैदा करने या बढाने के उद्देश्य से विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । हर साल सितंबर महीने में चौदह तारीख को देश-भर की हिन्दी संस्थओं, केंद्र सरकारी आगे पढ़ें
सूचना प्रौद्योगिकी के इस नये युग में हमारी ओर से एक लघु विनम्र प्रयास 'केरलाञ्चल' नाम से एक वेब पत्रिका के रूप में यहाँ प्रस्तुत है। आज इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर में ही नहीं मोबईल फोनों में भी दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर अपनी जान-पहचान की भाषा में खबरें पढ़ सकते हैं। प्रादुर्भाव के समय वेब पत्रकारिता (सायबर जर्नलिज़म) कुछ अंग्रेज़ी साइटों तक सीमित रहा। लेकिन पिछले पच्चीस-तीस वर्षों के अन्तराल में निकले हिन्दी वेबसाइटों की भरमार देखकर इस क्षेत्र में हुए विकास और लोकप्रियता हम समझ सकते हैं। हिन्दी यूनिकोड का विकास हिन्दी वेब पत्रकारिता का मील पत्थर आगे पढ़ें