केरल के कर्मठ हिन्दी सेवी डॉ.एन.चन्द्रशेखरन नायर
हिन्दीतर प्रदेशों विशेषतया केरल राज्य के हिन्दी विद्वानों और साहित्यकारों में डॉ.एन.चन्द्रशेखरन नायर का नाम अग्रणी और सर्वादरणीय है । डॉ.एन नायर विभिन्न प्रकार से हिन्दी भाषा, साहित्य और ,संस्कृति की लगातार सेवा करते हुए उसे समृध्द बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान देते आ रहे हैं । आज लगभग 12 वर्ष की आयु में भी आप कर्मठ हिन्दी सेवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं ।
केरल हिन्दी साहित्य अकादमी के संस्थापक,बहुमुखी प्रतिभा के धनी तथा मलयालम, हिन्दी, संसकृत और अंग्रेजी भाषाआं के प्रकांड पंडित डॉ. नायर ने हिन्दी भाषा को अपने सृजन-क्षेत्र और कर्म-क्षेत्र के रूप में चुना ।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए और बिहार विश्वविद्यालय से पी.एच.डी को उपाधियां प्राप्त कीं । अच्छे चित्रकार के रूप में जाने जाते हैं । अपके द्वारा निर्मित चित्रों की अनेक प्रदर्शनियां दिल्ली और तिरुवनंतपुरम में लगाई गई ।
उन्होंने स्कूलों, कॉलेजें में हिन्दी अध्यापन कार्य किया । आप यूजीसी के मेजर रिसर्च फेलो रहे और 1988 से 1989 दो वर्ष के लिए एमरेट्स प्रोफेसर भी रहे ।
उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं पर साधिकार अपनी लेखनी चलाई । उनकी मौलिक, अनूदित और संपादित कृतियों का संग्रह यदी एक स्थान पर किया जाए तो उनकी रचनाओं का एक बडा अंबार लग जाएगा ।
डॉ.नायर ने दक्षिण और उत्तर के बीच भाषायी सेतु का निर्माण कर भारतीय संस्कृति को सुदृढता प्रदान करते हुए राष्ट्रीय भावनात्मक एकता का मार्ग प्रशस्त किया है । गॉधी जी का आदर्श और सुधारवादी दृष्टिकोण भी इनके साहित्य में भरपूर मिलता है ।
अपने 'चिरंजीव' महाकाव्य में उन्होंने पौराणिक चिरंजीव पात्रों – अश्वत्थामा, हनुमान, व्यासदेव, कृपाचार्य, परशुराम आदि को उनके प्रसंगों से जोडकर उनका जीवन चित्रण किया है ।
प्रसाद की तरह भारत की प्राचीन पौराणिक संस्कृति को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने रचनाएं लिखी हैं तो वहीं दूसरी और मैथिलीशरण गुप्त और दिनकर की तरह देशभक्ति की रचनाएं दी हैं । उन्होंने प्रेमचंद की तरह ग्रामीण सामाजिक सांस्कृतिक चेतना की रचनाएं भी की है ।
देश के सात विश्वविद्यालयों में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध कार्य हो चुके हैं और अभी भी यह क्रम जारी है । लगभग 240 साहित्यकारों द्वारा उनको आधार बनाकर लेख लिखे गये हैं । इनमें से प्रमुख हैं, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, विष्णु प्रभाकर, डॉ.विजयेंद्र स्नातक, ड़ॉ.प्रभाकर माचवे, डॉ.भोलानाथ तिवारी, कमलेश्वर,डॉ.पी के. नारायण पिल्लै आदि।
ड़ॉ.नायर को अनेकों पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनकी संख्या 50 से भी अधिक है । उसमें 8 नेशनल पुरस्कार है ।
डॉ. नायर 25 से भी अधिक राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय शैक्षिक सामाजिक, सांस्कृतिक समितियों के कार्यकारी सदस्य रहे हैं। भारत सरकार की राजभाषानीति के समुचित कार्यान्वयन में भी उन्होंने अपना प्रभावी योगदान दिया । भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों में उन्हें सदस्य के रूप में शामिल किया गया , जिनमें रेल मंत्रालय और परिवहन और जहाज़रानी मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय , श्रम मंत्रालय, नगर विमानन मंत्रालय प्रमुख हैं ।
डॉ.नायर की साहित्यिक सेवाओं के सम्मान में विभिन्न संस्थाओं द्वारा अभिनंदन-ग्रंथ प्रकाशित किये गये हैं , उनपर विशेषांक निकाले गये हैं । इन सबसे उनकी सादगी ,विनम्रता और साहित्य साधना में और अधिक गंभीरता परिलक्षित हुई है। यहाँ तक कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय से पुरस्कार स्वरूप प्राप्त रुपये एक लाख की रीशि उन्होंने तत्क्षण सुनामी पीडितों की सहायतार्थ प्रधान मंत्रि कोष में दान कर दी ।
केरल में हिंदी भाषा और साहित्य को डॉ. नायर ने पुष्पित-पल्लवित कर उसे नई दिशा ही नहीं दिखायी बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति और मूल्यों को प्रतिपादित करनेवाला अमूल्य साहित्य देश को समर्पित किया है , सहज और सरल जीवन के इस कर्मठ हिंदी सेवी की रचनात्मक यात्रा निरंतर हिंदी भाषा साहित्य को समृद्ध करते रहे ,यही यूनियन धारा की शुभ कामना है । डॉ.नायर ने हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा करनेवाले हिंदी सेवी के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की हैं।
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