संपादकीय
केरलाञ्चल
- हिन्दी भाषा तथा साहित्य केलिए समर्पित -
एक संपूर्ण हिन्दी वेब पत्रिका
नया कदम , नई पहल ; एक लघु, विनम्र प्रयास।
'केरलाञ्चल' एक बिलकुल ही नई वेब पत्रिका है । हिन्दी के प्रचार प्रसार और प्रयोग के क्षेत्र में बिलकुल ही नयी पत्रिका । हिन्दी के प्रचार, प्रसार और प्रयोग के क्षेत्र में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ, दिल्ली के अधीन ही कई स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाएं कार्यरत हैं । भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के लिए अधिनियम बनाये गये है और उसके तहत देश भर में कर्मचारियों और साधारण नागरिकों में भी कार्यसाधक ज्ञान या हिन्दी के प्रति रुचि पैदा करने या बढाने के उद्देश्य से विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । हर साल सितंबर महीने में चौदह तारीख को देश-भर की हिन्दी संस्थओं, केंद्र सरकारी कार्यालयों, राष्ट्रीयकृत बैंकों , उपक्रमों, निगमों , विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और हिन्दी विद्यालयों द्वारा हिन्दी दिवस या इसी सिलसिले में हिन्दी सप्ताह, पखवाड़ा या हिन्दी मास मनाये जाते हैं। तिस पर भी हम लक्ष्य से काफ़ी दूर है।
हिन्दी के प्रचार-प्रसार, प्रयोग और हिन्दीतर प्रान्तों में उसके कार्यन्वयन को लक्ष्य करके एक हिन्दीतर प्रान्त से यह हिन्दी वेब पत्रिका एक लघु प्रयास है। केरल की हिन्दी प्रचार-प्रसार और हिन्दी में साहित्यिक सृजन के क्षेत्र में एक लंबी, पुरानी और समृर्थ परंपरा है। यह परंपरा महाराजा स्वाती तिरुनाल से शुरु होती है और आज केरल के महान हिन्दी लेखक और विद्वान डॉ.एन.चन्द्रशेखरन नायर या डॉ.वेल्लायणि अर्जुनन तक लंबी है, और आगे जारी है।
केरल में हिन्दी प्रचार - प्रसार के क्षेत्र में स्वर्गीय के.वासुदेवन पिल्लै ने एक महान संस्था की स्थापना की थी और उनके शिष्य एवं कर्मठ हिन्दी सेवी – कार्यकर्ता स्वर्गीय एम.के.वेलायुधन नायर ने अपने त्यागपूर्ण जीवन और कठिन परिश्रम से उसे विकास के चरम शिखर पर पहुंचाया। स्वर्गीय के.जी.बालकृष्ण पिल्लै ने इस कार्य में उनका हाथ बंटाया और संस्था की मुख पत्रिका का कई वर्षौं तक संपादन भी किया था। स्वर्गीय के.एस.राघवन पिल्लै का एक दूसरा त्यागपूर्ण व्यक्तित्व है जिन्होंने गाँधीजी का भाषण सुनकर उनके आह्वान पर हिन्दी और खादी को अपना जीवन व्रत ही स्वीकार किया। आलप्पुष़ा जिले में, अपने जन्म गाँव रामपुरम में, आपने हिन्दी के प्रचार-प्रसार का नेतृत्व किया। इनमें अन्तिम तीन व्यक्तियों के साथ कई वर्षों तक निकट संबन्ध, संपर्क और सहयोग का सौभाग्य हमें मिला था। अध्यापक, लेखक, अनुवादक एवं आलोचक स्वर्गीय डॉ.विश्वनाथ अय्यर भी राष्ट्रीय स्तर पर आदरणीय, प्रतिभासंपन्न व्यक्ति थे। हम इस अवसर पर इन पूर्वसूरियों और गुरुजनों का आदर के साथ स्मरण करते हैं और उनका नमन करते हैं। हिन्दी के क्षेत्र में समकालीन वरिष्ठ एवं श्रेष्ठ हिन्दी कार्यकर्ताओं और विद्वानों का समर्थन और आशीर्वाद भी हमें प्राप्त है।
इन वरिष्ठ,श्रेष्ठ, कर्मठ हिन्दी सेवियों की भाँति निष्ठा और समर्पण की भावना नई पीढी में भी विद्यमान है। युवा पीढ़ी के कुछ हिन्दी छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों, कार्यकर्ताओं, अध्यापकों के कठिन परिश्रम और समर्पण की भावना का ही सद्परिणाम है यह वेब पत्रिका। सह-संपादक डॉ.महेष का तकनीकी सहयोग और समर्थन सराहनीय है, जिसके बिना पत्रिका का निकालना असंभव था। हम ऐसे नौजवानों - युवतियों, नवलेखकों, शोधार्थियों और हिन्दी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन और प्रेरणा देना चाहते हैं – इस नव माध्यम को अवलंब बनाकर। नई पीढ़ी प्रौद्योगिकी के विकास के साथ कदम से कदम मिलाकर आग्रसर होने केलिए उत्सुक है। हम उन्हें साथ लेना चाहते हैं और आगे बढ़ाना चाहते हैं।
केरल, भारत का दक्षिणी अञ्चल है। इसलिए पत्रिका का नाम ही रखा गया 'केरलाञ्चल' । पत्रिका में तीन खण्ड़ हैं , पहला, केरल दर्शन: जिसमें केरल से संबन्धित विषयों और केरल के लेखकों को प्रमुखता दी जाएगी। खासकर हिन्दी की गतिविधियों और शोधकार्यों पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा। दूसरा खण्ड है, भारत दर्शन: जिसमें भारत की एक झलक दिखलाने की कोशिश की जाएगी। इतर क्षेत्र के लेखकों तथा विषयों को प्रमुखता दी जाएगी। इसमें क्षेत्र विशेष के त्योज-त्यौहार और दर्शनीय स्थानों के लघु विवरणों के साथ हिन्दी भाषा तथा साहित्य पर लेख, लघु कहानियाँ और कविताएँ आदि शामिल है। लेखों, कहानियों और कविताओं का, क्षेत्रविशेष के हिन्दी विद्वानों से, क्षेत्रविशेष की भाषा से हिन्दी में अनूदित सामग्री को प्रमुखता दी जाएगी। तीसरा खण्ड विश्व दर्शन है जिसमें विश्व के इतर देशों की मुख्यतया साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों को सम्मिलित करने का प्रयास रहेगा।
लीजिए, विजयदशमी के इस पुण्य पर्व पर ' केरलाञ्चल '- हिन्दी भाषा तथा साहित्य के लिए समर्पित एक संपूर्ण हिन्दी वेब पत्रिका । हमारा यह नया कदम, नई पहल ; एक लघु, विनम्र प्रयास- समर्पित है, सहयोग प्रार्थित है।
डॉ.एम.एस.राधाकृष्ण पिल्लै
तिरुवनन्तपुरम,
23-10-2015. (ड़ॉ.एम.एस.आर.पिल्लै)
संपादक
केरलाञ्चल
नया कदम , नई पहल ; एक लघु, विनम्र प्रयास।
संपादक
डॉ.एम.एस.राधाकृष्ण पिल्लै (डॉ.एम.एस.आर.पिल्लै)
सहसंपादक
सलाहकार समिति
संपादकीय विभाग में सहयोग:
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कार्तिका कंप्यूटर सेंटेर ,
कवडियार, तिरुवनंतपुरम-695003
देशीय हिन्दी अकादमी,
पेरुंगुष़ी, तिरुवनंतपुरम-695305
हिन्दी भाषा तथा साहित्य केलिए समर्पित एक संपूर्ण हिन्दी वेब पत्रिका
07/03/16 00:24:09
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सहसंपादक की कलम से
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'केरलाञ्चल' एक बिलकुल ही नई वेब पत्रिका है । हिन्दी के प्रचार प्रसार और प्रयोग के क्षेत्र में बिलकुल ही नयी पत्रिका । हिन्दी के प्रचार, प्रसार और प्रयोग के क्षेत्र में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ, दिल्ली के अधीन ही कई स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाएं कार्यरत हैं । भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के लिए अधिनियम बनाये गये है और उसके तहत देश भर में कर्मचारियों और साधारण नागरिकों में भी कार्यसाधक ज्ञान या हिन्दी के प्रति रुचि पैदा करने या बढाने के उद्देश्य से विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । हर साल सितंबर महीने में चौदह तारीख को देश-भर की हिन्दी संस्थओं, केंद्र सरकारी आगे पढ़ें
सूचना प्रौद्योगिकी के इस नये युग में हमारी ओर से एक लघु विनम्र प्रयास 'केरलाञ्चल' नाम से एक वेब पत्रिका के रूप में यहाँ प्रस्तुत है। आज इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर में ही नहीं मोबईल फोनों में भी दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर अपनी जान-पहचान की भाषा में खबरें पढ़ सकते हैं। प्रादुर्भाव के समय वेब पत्रकारिता (सायबर जर्नलिज़म) कुछ अंग्रेज़ी साइटों तक सीमित रहा। लेकिन पिछले पच्चीस-तीस वर्षों के अन्तराल में निकले हिन्दी वेबसाइटों की भरमार देखकर इस क्षेत्र में हुए विकास और लोकप्रियता हम समझ सकते हैं। हिन्दी यूनिकोड का विकास हिन्दी वेब पत्रकारिता का मील पत्थर आगे पढ़ें