श्रद्धांजलि
वरिष्ठ हिन्दी प्रचारक एवं स्वतंत्रता सेनानी
के.एस.राघवनपिल्लै
(1918 – 2015)
वरिष्ठ हिन्दी प्रचारक और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी रामपुरत मणक्काट्ट पुत्तन वीट में के.एस. राघवन पिल्लै (97) गोलोकवासी हुए । आप भूदान आन्दोलन के सक्रिय कार्य कर्ता भी थे।
गाँधी जी के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम के मैदान में उतरनेवाले राघवन पिल्लै जी ने स्वातंत्र्योत्तर काल के अपना जीवन हिन्दी के प्रचार के लिए समर्पित किया । वे अविवाहित थे । एक ही वक्त भोजन । खानदानी मकान के पास ही एक पर्णशाला जैसी कुटी में निवास।
सन् 1936 में रामपुरम में पी.जी.वासुदेव के नेतृत्व में हिन्दी प्रेमी मण्डल की स्थापना हुई और राघवन पिल्लै सहित 30 छात्र हिन्दी भाषा सीखने के लिए रामपुरम बॉयस हाईस्कूल में शुरू की गयी कक्षा में भर्ती हुए । लेकिन कक्षायें आगे नहीं बढी तो आपने कोट्टयम में नारायण देव के विद्यालय में भर्ती होकर शिक्षा पूरी की । राष्ट्रभाषा विशारद परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने 1938 में प्रदेश का हिन्दी प्रचार का दायित्व अपने कंधों पर उठा लिया । महादेव देशायी से उनका संपर्क हुआ तो उन्हें ग्रामवासियों को उद्बुद्ध कर उन्हें स्वतत्रता संग्रम के लिए सुसज्ज करने का आदेश मिला । तत्कालीन तालूक कांग्रेस कम्मिटी अध्यक्ष पाण्डवत्तु शंकरा पिल्लै से भी उन्हें अपने कार्य क्षेत्र में पूरा समर्थन मिला ।
1940 में आपने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा से हिन्दी प्रवीण की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा वहीं से अध्यापक प्रशिक्षण भी प्रप्त किया । उसी वर्ष अपने जन्म गांव के निकट रामपुरम में आपने एक हिन्दी विद्यालय की शुरूआत की । सन् 1937 में मावेलिक्करा के पास तट्टारंबलम में आपने गाँधीजी का भाषण बहुत ही निकट से सुना था (17-1-1937) और इसका स्मरण वे हमेशा पुलक के साथ किया करते थे। गांधिजी से प्रभावित होकर उसी दिन उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम, खादी,हिन्दी और भूदान को जीवन-व्रत स्वीकार किया ।
आपने स्वतत्रता संग्राम में हिस्सा लेने से कारावास की सजा भी भोगी । इनकी इतनी लंबी शिष्य परंपरा है कि मध्य तिरुवितांकूर के स्कूलों को हिन्दी अध्यपकों में अधिकाँश इनके शिष्य हैं । सन 1947 जूलाइ 15 को खुले आम तिरंगा फहराने से उन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया ।
1990 में दक्षिणी राज्यों में सब से ज्यादा छात्रों को बिठाने के उपलक्ष्य में उन्हें दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा का विशेष पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है । दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा का वरिष्ठ हिन्दी प्रचारक स्वर्ण पदक एवं प्रशस्ति पत्र उन्हें प्राप्त हुआ है । श्रेष्ठ हिन्दी प्रचारक के उपलक्ष्य में प्रदत्त श्रीमती यमुना बाई स्मारक पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र से उन्हें नवासा गया है । 1970 में कायंकुलम सरकारी हाइस्कूल से सेवानिवृत्त हुए ।
प्रस्तुति : डॉ.एम.एस.आर.पिल्लै
केरलाञ्चल
नया कदम , नई पहल ; एक लघु, विनम्र प्रयास।
संपादक
डॉ.एम.एस.राधाकृष्ण पिल्लै (डॉ.एम.एस.आर.पिल्लै)
सहसंपादक
सलाहकार समिति
संपादकीय विभाग में सहयोग:
सहयोगी संस्थाएँ:
कार्तिका कंप्यूटर सेंटेर ,
कवडियार, तिरुवनंतपुरम-695003
देशीय हिन्दी अकादमी,
पेरुंगुष़ी, तिरुवनंतपुरम-695305
हिन्दी भाषा तथा साहित्य केलिए समर्पित एक संपूर्ण हिन्दी वेब पत्रिका
07/03/16 00:24:21
Last updated on
सहसंपादक की कलम से
संपादकीय
'केरलाञ्चल' एक बिलकुल ही नई वेब पत्रिका है । हिन्दी के प्रचार प्रसार और प्रयोग के क्षेत्र में बिलकुल ही नयी पत्रिका । हिन्दी के प्रचार, प्रसार और प्रयोग के क्षेत्र में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ, दिल्ली के अधीन ही कई स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाएं कार्यरत हैं । भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के लिए अधिनियम बनाये गये है और उसके तहत देश भर में कर्मचारियों और साधारण नागरिकों में भी कार्यसाधक ज्ञान या हिन्दी के प्रति रुचि पैदा करने या बढाने के उद्देश्य से विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । हर साल सितंबर महीने में चौदह तारीख को देश-भर की हिन्दी संस्थओं, केंद्र सरकारी आगे पढ़ें
सूचना प्रौद्योगिकी के इस नये युग में हमारी ओर से एक लघु विनम्र प्रयास 'केरलाञ्चल' नाम से एक वेब पत्रिका के रूप में यहाँ प्रस्तुत है। आज इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर में ही नहीं मोबईल फोनों में भी दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर अपनी जान-पहचान की भाषा में खबरें पढ़ सकते हैं। प्रादुर्भाव के समय वेब पत्रकारिता (सायबर जर्नलिज़म) कुछ अंग्रेज़ी साइटों तक सीमित रहा। लेकिन पिछले पच्चीस-तीस वर्षों के अन्तराल में निकले हिन्दी वेबसाइटों की भरमार देखकर इस क्षेत्र में हुए विकास और लोकप्रियता हम समझ सकते हैं। हिन्दी यूनिकोड का विकास हिन्दी वेब पत्रकारिता का मील पत्थर आगे पढ़ें